हे साई।
आपके श्री चरण धन्य है और उनका स्मरण कितना सुखदायी है । आपके भवभयविनाशक
स्वरुप का दर्शन भी धन्य है, जिसके फलस्वरुप कर्मबन्धन छिन्नभिन्न हो जाते
है । यघपि अब हमें आपके सगुण स्वरुप का दर्शन नहीं हो सकता, फिर भी यदि
भक्तगण आपके श्रीचरणों में श्रद्घा रखें तो आप उन्हें प्रत्यक्ष अनुभव दे
दिया करते है। आप एक अज्ञात आकर्षण शक्ति द्घारा निकटस्थ या दूरस्थ भक्तों
को अपने समीप खींचकर उन्हें एक दयालु माता की समान हृदय से लगाते है। हे
साई। भक्त नहीं जानते कि आपका निवास कहाँ है, परन्तु आप इस कुशलता से
उन्हें प्रेरित करते है, जिसके परिणामस्वरुप भासित होने लगता है कि आपका
अभयहस्त उनके सिर पर है और यह आपकी ही कृपा-दृष्टि का परिणाम है कि उन्हें
अज्ञात सहायता सदैव प्राप्त होती रहती है।
(श्री साई सच्चरित्र)