तात्या कोते पाटिल और बय्याजी कोते बाबा के अनन्य भक्त थे। इनके वंशजो को आज भी
पालकी समारोह के दौरान बाबा की विशेष सेवा
का अधिकार प्राप्त है ।
तात्या के पोते बीजू और बय्याजी के पोते
गोपी नाथ पालकी समारोह शुरू होने से
पहले समाधी मंदिर जाते है। जहाँ पुजारी
बाबा का चित्र बीजू को और बाबा की पादुका
का कांच का बॉक्स गोपीनाथ को देते है। जिसे ये बैंड बाजे, ढोल नगाड़ो के साथ जलूस के रूप में द्वारकामाई लाया जाता है।
बीजू बाबा के चित्र को कुछ देर के लिये बाबा के पथ्थर पर रखते है। सब मिल कर गाते है-
"साई नाम के दो अक्षर में, सब सुख शांति समायी श्री साई नाम सुखदायी।।"
फिर बाबा की तस्वीर व् पादुकाओं को पालकी में रखा जाता है।जब तक बीजू पालकी उठाने का संकेत नही करते, पालकी नही उठती।
ठीक उसी तरह, जैसे बाबा के समय में जब तक तात्या आकर बाबा को पालकी समारोह में चलने के लिये नही उठाते थे, बाबा चावड़ी
की ओर नही जाते थे।
चावड़ी में पहुचने पर बाबा की आरती की जाती है और बीजू द्वारा जलाई गयी चिलम बाबा को
अर्पित की जाती है।
ॐ साई राम