शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण... अधिक जानने के लियें पूरा पेज अवश्य देखें

शिर्डी से सीधा प्रसारण ,... "श्री साँई बाबा संस्थान, शिर्डी " ... के सौजन्य से... सीधे प्रसारण का समय ... प्रात: काल 4:00 बजे से रात्री 11:15 बजे तक ... सीधे प्रसारण का इस ब्लॉग पर प्रसारण केवल उन्ही साँई भक्तो को ध्यान में रख कर किया जा रहा है जो किसी कारणवश बाबा जी के दर्शन नहीं कर पाते है और वह भक्त उससे अछूता भी नहीं रहना चाहते,... हम इसे अपने ब्लॉग पर किसी व्यव्सायिक मकसद से प्रदर्शित नहीं कर रहे है। ...ॐ साँई राम जी...

Saturday 6 September 2014

खापर्डे शिरडी डायरी शिरडी में दूसरा लंबा वास्तव्य (From 6th Dec 1911 to 15th March 1912)


 ६ दिसम्बर , १९११

जैसे ही मेरा तांगा श्री दीक्षित द्वारा नवनिर्मित वाडे के पास पहुँचा पहले व्यक्ति जिनसे मेरी भेंटहुई वे थे श्री माधवराव देशपांडे | मेरे टाँगे से उतरने से पहले ही श्री दीक्षित ने आज रात मुझेआज रात अपने साथ भोजन करने के लिए कहा | उसके बाद मैं माधव राव के साथ साईंमहाराज के प्रति अभिवादन करने के लिए गया और थोड़ी दूर से उन्हें प्रणाम किया | उस समयवे हाथ -पैर धो रहे थे | फिर मैं नहाने-धोने और पूजा करने में व्यस्त हो गया  और वे जब बाहरनिकले तब उन्हें प्रणाम नहीं कर सका |  बाद में हम लोग एक साथ उनके पास गए औरमस्जिद में एक साथ उनके पास गए और मस्जिद में उनके पास बैठे | उन्होंने एक ऐसे फकीरकी कहानी सुनाई जिसे अच्छे पकवानों का शौक था | इस फकीर को एक बार किसी रात्रि भोजपर आमंत्रित किया गया और वे साईं महाराज के साथ गए | निकलते समय फकीर की पत्नी नेसाईं महाराज को उस भोज से कुछ खाना लाने के लिए कहा और इसके लिए एक बर्तन दिया |फकीर ने इतना जम कर खाया कि फिर उसी जगह पर सो जाने का फैसला किया | साईंमहाराज रोटियाँ अपनी पीठ पर बाँधकर और रसदार भोज्य पदार्थ वाले बर्तन को अपने सर परउठाए वापिस निकले | उन्हें रास्ता बहुत ही लंबा लगा | वे रास्ता भूल गए | कुछ देर आरामकरने के लिए एक मांग वाड़े के पास बैठ गए | कुत्ते भौकने लगेवे उठे और अपने गाँव लौटआए और रोटी व् भोज्य पदार्थ फकीर की पत्नी को दे दिया | तब तक फकीर भी लौट आए औरउन सब ने एक साथ बहुत अच्छा भोजन किया | उन्होंने आगे कहा कि एक अच्छे फकीर कामिलना बहुत कठिन है |श्री साथे जिन्होंने वह वाड़ा बनवाया जिसमें मैं पिछले साल रहा था , भीआए हुए है , और मैंने उन्हें पहले मस्जिद में देखा और फिर रात्रि भोज पर | श्री दीक्षित ने बहुतसारे लोगों को भोजन कराया | उनमें श्री ठोसर भी हैं , जो सवर्गीय माधव राव गोविन्द रानाडेकी बहिन के पुत्र हैं | ठोसर बंबई के कस्टम कार्यालय में नौकरी करते है | वे बहुत भले आदमीहैं और हम बात करने बैठे | वहां पर एक सज्जन नासिक से हैं और एनी कई लोग हैं | उनमें सेएक टिपणीस सपत्नी आए हैं | और वे अपनी पत्नी को पुत्र-प्राप्ति की याचना के लिए लाए हैं|बापूसाहेब जोग यहाँ हैंऔर उनकी पत्नी की तबीयत ठीक हैं | श्री नूलकर अब जीवित नहीं हैंऔर मैं उन्हें बहुत याद करता हूँ | उनके परिवार का यहाँ कोइ नहीं हैं | बाला साहेब भाटे यहाँ हैंऔर उनकी पत्नी ने दत्त जयन्ती के दिन एक पुत्र को जन्म दिया | हम लोग दीक्षित वाड़े में ठहरेहैं जो बहुत सुविधाजनक है | 

जय साईं राम!!!
ॐ साईं राम!!!





 दिसम्बर , १९११


मैं कल अच्छी नींद सोया | मेरे पुत्र और पत्नी का भीष्म के साथ मन लग रहा था | विष्णु भी यहाँ हैं | हमनेआज बहुत सारे लोगों को भोजन कराया , और मैं इस जगह की नियमित दिनचर्या में  गया हूँ | मैंने बाबासाईं महाराज को जब वे बाहर जा रहे थे , नमन किया | और उनके मस्जिद में लौटने के बाद , और फिर सेशाम को , बाद में फिर से जब वे सोने के लिए चावडी में गए तब दर्शन किए | भजन-पूजन कुछ कम था |हमारे शेज आरती से लौटने के बाद , भीष्म ने और दिन की तरह भजन किए और श्री ठोसर ने कुछ पद गाए ,कुछ उनकी अपनी रचनाएं थी और बाकी कबीर , दासगणु और अन्य की | दासगणु की पत्नी बया , जोपिछले साल यही थी , अब उनके पिता के घर है | हम लोग देर रात तक बात करने बैठे | रात को माधव रावदेशपान्डे ने हनन बताया की दादा केलकर का बाबू नाम का एक भतीजा था |साईं महाराज उसके प्रति बहुतदयालु थे | वह बाबू मर गया और महाराज आज तक उसे याद करते हैं | श्री मोरेश्वर विश्वनाथ प्रधान जो कीबंबई में एक व्यवसायी वाकी है , साईं महाराज के दर्शन करने आए | उनकी पत्नी को देख कर साईं महाज नेकहाँ कि वह बाबू की माँ हैं | बाद में वह गर्भवती हुई , और बंबई में उसके प्रसव के दें यहाँ साईं महाराज नेकहा कि उन्हें पीड़ा हुई , और यह भी कि जुडवाँ बच्चे होंगे और उनमें से एक मर जाएगा | ऐसा ही हुआ औरश्रीमती प्रधान अपने छोटे पुत्र को लेकर यहाँ आई तो साईं महाराज ने उसे अपनी गोद में लिया और पूछा कि,  क्या वह एस जगह आएगा , और दो महीने के उस बच्चे ने बहुत साफ जवाब  दिया  "" हूँ ""|

ॐ साईं राम!!!

 दिसम्बर , १९११


मैं कल और परसों कहना भूल गया कि उपासनी वैद्य , जो अमरावती में थी , यहाँ हैं और मेरे यहाँपहुँचने के तुरंत बाद मिलें |हम लोग बातचीत करने बैठे | उन्होंने मुझे अमरावती छोड़ने केबाद से अपनी कहानी संक्षेप में बतलाई कि किस तरह वे ग्वालियर स्टेट गए , किस तरहउन्होंने एक गाँव खरीदा उससे कोइ आमदनी नहीं हुई |कैसे उनकी एक महात्मा से भेंट हुई ,कैसे वे बीमार पद गए , कैसे उन्होंने सभी इकाज आज़माए , कितने ही साधू और महात्माओं केपास गा , आखिर में किस तरह साईं महाराज ने किस तरह अपने हाथों में लिया , कैसे उनमेंसुधार हुआ और अब यहाँ रहने की आज्ञा का पालन कर रहे हैं |
उन्होंने संस्कृत में साईं महाराज के एक स्तोत्र की रचना की है | हम सब जल्दी उठ गए औरकांकड़ आरती में में सम्मिलित होने के लिए गए | यह बहुत ही सुखकर है | मैंने प्रार्थना की ,स्नान किया और साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए | और फिर उनके लौटने के बाद ,और एक बार फिर दोपहर में | साईं महाराज मेरी और देखते हुए बोले " क्यों सरकार ! " फिरउन्होंने सामान्य उपदेश दिया कि मुझे वैसे ही रहना चाहिए जैसे ईश्वर मुझको रखे , और फिरकहा कि जो आदमी अपने परिवार से जुड़ा है उसे बहुत कुछ सहन करना पड़ता है वगैरह वगैरहऔर फिर एक अमीर व्यक्ति की कहानी बतलाई जो शाम तक भूखा रहा , अपने लिए भोजनबनाया और एक मोटी रोटी खाई , इन सबके पीछे कारण कोइ अस्थाई परेशानी थी | हमने शामको साईं महाराज के फिर दर्शन किए और दीक्षित द्वारा बनवाई वाडे के बरामदे में बैठे | बंबई केदो सज्जन एक सितार लाए और उसे बजाने लगे , भजन किए | श्री ठोसर , जिन्हें मैं हज़रातकहता हूँ , ने भी बहुत सुन्दर गायन किया और भीष्म ने एनी दिनों की तरह भजन किए | आधीरात तक समय बहुत आनन्द से बीत गया | श्री ठोसर बहुत ही अच्छे साथी हैं | मैंने अपने पुत्रबलवंत , बंबई के सज्जन और अन्य लोगों के साथ चिंतन मनन आदि के बारे में लम्बी वार्ता की|
ॐ साईं राम!!!

 दिसम्बर , १९११ 


मुझे उठने में और प्रार्थना करने में थोड़ी देर हो गई | आज श्री चांदोरकर एक नौकर के साथ आए | अन्यभी आए और कुछ लोग जो यहाँ थे चले गए | श्री चांदोरकर सरल और बहुत भले आदमी हैं , बातचीत मेंबहुत मधुर और अपने व्यवहार में सुलझे हुए | मैं मस्जिद में गया और देर तक वहां कही जाने वाली बातोंको सुनता रहा | साईं महाराज आनन्द भाव में थे | मैं अपना हुक्का वही ले गया और साईं महाराज ने उसमेंसे काश लिया | आरती के समय वे अनोखे रूप में सुन्दर दिखे , लेकिन उसके तुरंत बाद बा ही उन्होंने सब कोवापिस भेज दिया | उन्होंने कहा की वे हमारे साथ रात्रि भोज के लिए आएँगे | वे मेरी पत्नी की " आजीबाई "कहते हैं | हमारे ठिकाने पर लौटने पर हमें पता चला कि श्री दीक्षित की पुत्री , जो बीमार थी ,  वो चल बसी |कुछ दिनों पहले मृतक को स्वप्न आया कि साईं महाराज ने उसे नीम के पेड़ के नीचे रखा था | साईं महाराजने भी कल कहा था कि उस बालिका की मृत्यु हो गई है | हम लोग उस दुखद घटना के बारे में बात के बारे मेंबात करने बैठे |वह बच्ची केवल सात वर्ष की थी | मैं गया और उसके पार्थिव अवशेषों को देखा | वे बहुतमनमोहक लगेउसके चहरे पर मृत्यु के बाद जो भाव था वः अनोखे रूप से मधुर था | इससे मुझे मडोना केउस चित्र की स्मृति हो आई जिसे मैंने इंग्लैड में देखा था | डाह संस्कार हमारे वाड़े के पीछे हुआ |
मैं शव यात्रा में शामिल हुआ और चार बजे शाम तक नाश्ता नहीं किया | दीक्षित ने यह धक्का खूब अच्छीतरह झेला | उनकी पत्नी स्वाभाविक रूप से दुःख के मारे टूट गई | हर किसी ने उनके साथ सहानुभूति की |शाम को सूर्यास्त और शेज आरती दोनों समय मैं साईं महाराज को देखने चावडी गया | रात को मैं , माधवराव देशपांडे , भीष्म और बाकी लोग देर तक साईं महाराज के बारे में बात करने बैठे | ठोसर को साईंमहाराज से बंबई लौटने की आज्ञा मिल गई | वे कल सुबह जाएंगे |

ॐ साईं राम!!!

१० दिसम्बर , १९११


सुबह मेरे प्रार्थना ख़त्म करने से पहले बंबई के सोलिसिटर दत्तात्रेय चिटणीस आए | जब मैं मैं कालेज मेंपढाता था तब वे वहाँ नए-नए आए थे | इसलिए वे बहुत पुराने मित्र हैं | स्वभाविक ही है कि वे पुरानें दिनोंकी बाते करने बैठ गए |  हमेशा की तरह मैंने साईं महाराज के दर्शन किए जब वे बाहर गए , और बाद मैंफिर जब वे बाहर से लौटे और अपनी जगह पर बैठे |हम सब आरती के बाद वापस लौटे | नाश्ता कुछ देर मेंहुआ और उसके बाद मैं उपासनी से , फिर बाद में श्री नानासाहेब चांदोरकर के साथ बातचीत करने को बैठा |वे साईं महाराज के अगर मुख्य नहीं तो सबसे पुराने शिष्य है | वे बहुत ही जिंदादिल आदमी हैं , उन्होंनेअपनी आपबीती मुझे बतलाई कि किस तरह वे साईं महाराज के संपर्क में आए और आत्मोन्नति की | वेमुझे उन निर्देशों को बतलाना चाहते थे जो उन्हें मिले थे लेकिन लोग इकट्ठा हो गए और वः बात सब केसामने बतलाई नहीं जा सही | मैंने दो बार दोपहर में साईं महाराज को देखने की कोशिश की वे किसी से भीमिलने के इच्छुक नहीं थे | मैंने शाम को चावड़ी पास उनके दर्शन किए और साठे साहेब , चितणीस औरअन्य लोगों के साथ लम्बी बातचीत की | नरसोंबावाड़ी से कोइ एक गोखले आया | वह कहता कि उसेकेड्गांव के नारायण महाराज और साईं महाराज के दर्शन का निर्देश मिला है | वह बहुत अच्छा गाता है |और रात को मैंने उससे कुछ भजन गवाए | श्री नाना साहेब चांदोरकर आज थाने लौटे हैं | बाला साहेब भाटे,जिनका कुछ दिन पहले जो पुत्र हुआ था वह आज शाम को चल बसा | यह बहुत दुखद था | साईं महाराज नेआज दोपहर को कोइ औषधि बनाई जो उन्हेंने ली |

ॐ साईं राम!!!

११ दिसम्बर , १९११ 


आज सुबह प्रार्थना बहुत बहुत आनन्ददायक थीऔर उसके बाद मैंने अपने को बहुत प्रफुल्लित अनुभवकिया | उसके बाद मैं दत्तात्रेय चिटणीस को पंचदशी को प्रारम्भ के कुछ पद समझाने को बैठा | वह बहुतभला आदमी है | उसके बाद हम साईं महाराज के पास गए , दोनों समय जब वे बाहर गए और जब वे लौटे |उन्होंने मुझे कई बार चिलम दी और अंगूर दिए जो राधा कृष्णा माई ने भिजवाए थे | उन्होंने दो बार मेरे पुत्रबलबंत को अंगूर दिए | दोपहर में मैंने सूना कि वे मस्जिद की सफाई कर रहे थे | इसीलिए मैंने उस तरफजाने का प्रयास नहीं किया | सभी लोग साईं महाराज के पास प्लेग से छुटकारा पाने के लिए एक शिष्ट मंडललेकर आए | उन्होंने लोगों को सड़के साफ करने के लिए , कब्रों तथा जलाने  दफ़नाने के घाटों की सफाईकरने और गरीबों को अन्नदान करने का आदेश दिया | मैंने पूरी दोपहर दैनिक अखबार पड़ने और चिटणीसतथा अन्य लोगों से बाते करने में बिताई | उपासनी कुछ रचना कर रहे हैं | शाम को हमने साईं महाराज केचावड़ी के पास दर्शन किए और फर शेज आरती में सम्मिलित हुए जिसके बाद चिटणीस , उनके इंजिनियरमित्र और एक अन्य व्यक्ति चले गए |

ॐ साईं राम!!!

१२ दिसम्बर , १९११



मैं और भीष्म यह सोचकर जल्दी उठ बैठे , कि काकड़ आरती शुरू होने वाली है लेकिन हम लोग करीब एकघंटा आगे थे | बाद में मेघा आया और हम आरती में शामिल हुए | फिर मैंने प्रार्थना की और साईं महाराजके बाहर जाने की प्रतीक्षा में बैठ गया |मैंने उनके तब दर्शन किए और वापस लौटने के बाद भी | मैंने इसकेबीच का समय गोखले के गीत सुनने में बिता या | वह अच्छा गाता था | आज नाश्ता देर से हुआ क्योकिमेधा को बेल पत्र नहीं मिल सके और उसे उनके लिए बहुत दूर जाना पड़ा | इसलिए दोपहर की पूजा करीबडेड़ बजे तक समाप्त नहीं हुई | साईं महाराज बहुत प्रसन्न भाव में थे और बैठे हुए बातचीत करते और हँसतेरहे | नास्ते के बाद मैं कुछ देर लेट गया और फिर अपने लोगों के साथ मस्जिद गया | साईं महाराजआनन्द भाव में थे और उन्होंने एक कहानी सुनाई | पास पड़े हुए एक फल को उठा कर उन्होंने मुझसे पूछाकि , यह कितने फल पैदा कर सकता है | मैंने उत्तर दिया कि , उतने हज़ारों बार जितने बीज इसके अन्दर हैवे बड़ी मधुरता से मुसुराएं और आगे बोले कि , ये तो अपने ही नियम का पालन करता है | उन्होंने यह भीबताया कि , किस तरह वहां एक बहुत भली और शुद्ध आचरण वाली लडकी थी , किस तरह उसने उनकी सेवाकी और उन्नति की | हमें लगभग सूर्यास्त के समय ' उदी ' मिली और साईं महाराज के दर्शन के लिए , जबवे शाम की सैर के लिए बाहर निकलते है , हम चावड़ी के सामने खड़े हो गए | हमने उनके दर्शन किए औरवापस आकर भीष्म गोखले , भाई और एक नवयुवक दीक्षित के भजन सुनाने बैठ गए |
माधव राव देशपांडे और उपासनी उपस्थित थे | शाम बहुत सुखद बीती |
ॐ साईं राम!!!

१६ दिसम्बर , १९११


पता चला कि मुझे ज़बर्दस्त सर्दी लग गई है | मैं काकड़ आरती के लिए समय पर नहीं उठ सका | मैं सुबह तीन बजे उठा और फिर देर तक सोता रहा | प्रार्थना के बाद मैं दरवेश साहेब फाल्के के साथ बातचीत करने बैठ गया , जिन्हें लोग बिना सोचे - विचारे हाजी साहेब या हज़रत कहते हैं | वे हिन्दू परम्परा के अनुसार एक कर्मयोगी कहे जा सकते हैं | और उनके पास सुनाने के लिए अनेकों किस्से - कहानियाँ हैं | मैंने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और बाद में जब वे मस्जिद लौट रहे थे तब दर्शन किए | वे अत्यंत आनन्द भाव में थे , और बातें व हंसी मज़ाक करने बैठे | आरती के बाद मैं अपने ठिकाने पर लौटा , खाना खाया और थोड़ी देर के लिए लेट गया लेकिन सो नहीं पाया | अमरावती से उन्होंने मुझे अमृत बाजार पत्रिका के अलावा बंबई एडवोकेट के दो अंक भी भेजे , इसलिए पड़ने के लिए काफी सामग्री है | सेशन केस के प्रस्ताव के बारे में एक तार भी मिला | तीन दिन पहले वर्धा में एक केस की पेशकश के बारे में एक तार था | मैंने अस्वीकार कर दिया क्योंकि साईं महाराज ने लौटने की अनुमति नहीं दी | आज के तार के बारे मैं भी वही नतीज़ा हुआ | माधव राव देशपांडे ने मेरे लिए अनुमति माँगी , और साईं महाराज ने कहा कि मैं परसों या अब से एक महीने बाद जा सकता हूँ | इससे मामा तय हो गया हैं | मैंने उन्हें सामान्य दिनों की तरह चावडी के सामने नमन किया और आरती के बाद हम वाड़े में भीष्म के भजन सुनने बैठे | आज नए आने वालों में से श्री हाटे हैं जिन्होंने एल.एक.एण्ड.एस. की परीक्षा दी है | वे बहुत ही भले नवयुवक हैं | उनके पिता जी अमरेली में जज थे और बाद में पलिताना के दीवान बने , मेरे विचार से मैं उनके चाचा को जानता हूँ |

ॐ साईं राम!!!


१४ दिसम्बर , १९११ 


रवाना होने की इच्छा से मैं जल्दी उठ गया | काकड़ आरती में शामिल हुआ , और कुछ जल्दी से पूजा करके माधवराव देशपांडे के साथ मस्जिद में साईं महाराज के पास गया | साईं महाराज ने कहा कि मैं कल जा सकता हूँ | और आगे बोले कि मुझे केवल प्रभु की ही सेवा करनी चाहिए और किसी की नहीं | उन्होंने कहा - " जो भगवान् देते हैं वह कभी ख़त्म नहीं होता और जो आदनी देता है वह कभी रहता नहीं '' | फिर मैं वापस आ गया और कल्याण के दरवेश साहेब फाल्के को आते देखा | वे पुराने किस्म के बड़े भले व्यक्ति हैं | श्री शिंगणे और उनकी पत्नी उनके साथ हैं | श्री शिंगणे बंबई के ऊँचे दर्जे के वकील हैं | और वकालत की शिक्षा भी देते हैं | मैं मध्यान्ह पूजा में सम्मलित हुआ और मैंने बापूसाहेब जोग के साथ नाश्ता किया | उसके बाद मैं लेता उअर मुझे नींद आ गई | मुझे मस्जिद जाने में थोड़ी देर हो गई और बाद मैं मैंने चावडी के पास नमस्कार किया | उसके बाद मैं दरवेश साहेब और श्री शिंगणे के साथ बातचीत करने बैठा | बाद में भीष्म णे अपना दैनिक भजन का कार्यक्रम सम्पन्न किया |
ॐ साईं राम


१५  दिसम्बर , १९११


सुबह प्रार्थना के बाद मैं श्री शिंगणे और दरवेश साहेब फाल्के के साथ बातचीत करने बैठा | वे हाजी साहेब भी कहलाते हैं | उन्होंने बग़दाद , कान्सटेंटीनोपोल और मक्का , और आसपास के स्थानों की यात्रा की है | उनकी बातचीत बहुत ही सुखकर और उप्देश्कारी है | साईं महाराज उन्हें बहुत पसंद करते हैं , उनके लिए भोजन भिजवाते हैं और उनका बहुत ख्याल रखते हैं | मैंने साईं महाराज के , बाहर जाते हुए और बाद मैं फिर उनके मस्जिद लौटने पर , दर्शन किए | वे बहुत ही प्रसन्न मुद्रा में थे और हम सब णे उनकी बातों का आनन्द लिया | खाने के बाद मैं थोड़ी देर के लिए लेटा और फिर मेरे पुत्र बलवंत के द्वारा पड़े गए दिल्ली के एक विवरण को सुनने बैठ गया | फिर हम लोग मस्जिद गए , साईं महाराज के आशीष प्राप्त किए और बाद में शेज आरती के लिए गए |


ॐ साईं राम!!!

१७ दिसम्बर , १९११


पूजा के बाद मैंने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए और फिर से उनके लौटने के बाद | वे बड़े ही अच्छे भाव में थे और हमने उनके द्वारा सुनाए लतीफों का पूर्ण आनन्द लिया | नाश्ते में देर हुई क्योंकि मेघराज बेलपत्र लेने के लिए बाहर गया हुआ था | उसे लौटने में थोड़ी देर हुई | दोपहर में मैं हाजीसाहेब फाल्के , डा. हाटे , श्री शिंगणे और अन्य लोगों के साथ बातचीत करने बैठा | गोखले आज चले गये | लगभग शाम के समय मैं मस्जिद में गया लेकिन साईं महाराज ने मुझे व मेरे साथियों को दूर से नमन करने को कहा | हालाँकि उन्होंने मेरे पुत्र बलवंत को अपने पास बुलाया और उसे दक्षिणा लाने को कहा | हम सब ने उन्हें चावड़ी के सामने प्रणाम किया और फिर से रात को शेज आरती में | आज रात साईं महाराज चावड़ी में सोते हैं |


ॐ साईं राम!!!


१९ दिसम्बर , १९११ 


सुबह मैं जल्दी उठ गया , तरोताजा महसूस किया , प्रार्थना की आयर मैं हर तरह से बेहतर लगा | जब मैं अभी पूजा कर ही रहा था , साईं महाराज बाहर निकले इसीलिए मैं उनके दर्शन न कर सका | बाद में मैं मस्जिद गया और उन्हें बहुत आनन्द भाव में पाया | उन्होंने कहा की एक अमीर आदमी था जिसके पाँच लड़के और एक लडकी थी | इन बच्चों ने पारिवारिक संपत्ति का बटवारा कर लिया | चार लड़कों ने तो चल और अचल संपत्ति में अपना हिस्सा ले लिया | पाँचवाँ लड़का और लडकी अपने हिस्से का अधिकार नहीं ले सके | वे भूखे घूमते रहे और साईं बाबा के पास आए | उनके पास रतनों से भरी छह गाड़ियां थी | लुटेरे छह में से दो गाड़िया ले गए | बाकी चार को बरगद के पेड़ के नीचे खडा कर दिया | यहीं पर त्रिंबक , जिसे बाबा मारुति कहते हैं , ने टोक दिया और कहानी का रुख बदल दिया | दोपहर की आरती के बाद मैं अपने ठिकाने पहुँचा , खाना खाया और दरवेश साहेब के साथ बातचीत करने बैठा | वे बहुत ही भले व्यक्ति है | वामनराव पटेल आज चले गए | दोपहर में राममूर्ति बुआ आए | भजन के दौरान वे बहुत नाचे-कूदे | हमने साईं महाराज के शाम को दर्शन किए और फिर शेज आरती के समय | राममूर्ति बुआ भीष्म के भजन में सम्मिलित हुए और नाचे और उछले | आज दोपहर साईं बाबा नीम गाँव की ओर निकले , डेंगले के पास गए , एक पेड़ काटा और वापिस लौटे , बहुत लोग साज-बाज लेकर उनके पीछे गए और उन्हें घर लाए | मैं बहुत दूर नहीं गया | राधा कृष्णा बाई हमारे वाड़े के पास साईं साहेब का अभिनन्दन करने आई और मैंने पहली बार उन्हें लम्बे घूँघट के बगैर देखा |

ॐ साईं राम!!!

२० दिसम्बर , १९११


मैं सुबह बहुत जल्दी उठ गया और काकड़ आरती के लिए गया |  आरती समाप्त होते समय होते मैं वामनराव को वहाँ उपस्थित देख हैरान हुआ और बाद में पता चला कि उसने रास्ते में कोपरगांव के पास अपने बैल गाडी चालक को अमरुद खरीदने भेजा और बैल भाग गए | वह फिर भटकता रहा और उसे अच्छी खासी परेशानी हुई |
यह बहुत ही विचित्रा किस्सा था | साईं म अहाराज बिना कुछ स्पष्ट आवाज़ में बोले चावड़ी से निकले | उन्होंने केवल ' अल्ला मालिक ' कहा | मैं अपने ठिकाने पर वापिस पहुचाँ , प्रार्थना की और साईं महाराज के बाहर जाते हुए और फिर उनके मस्जिद लौटने पर दर्शन किए | वे बड़े ही प्रसन्न भाव  में थे | दरवेश साहेब ने मुझे बतलाया कि साईं महाराज ने उन्हें रात को दर्शन दिए और उनकी मनोकामना पुरी की | मैंने साईं महाराज से इसका ज़िक्र किया लेकिन वे कुछ नहीं बोले | आज मैंने साईं महाराज की चरण सेवा की | उनकी टांगों की कोमलता अनोखी ही है | हमार्व खाने में थोड़ी देर हुई | इसके बाद में आज मिले हुए समाचार पत्रों को पड़ने बैठा | शाम होने पर मैं मस्जिद गया और साईं बाबा के आशीष प्राप्त किए | चावड़ी के सामने उन्हें नमन किया और अपने ठिकाने लौट आया | राम मारूति बुआ भीष्म के भजन में सम्मिलित हुए औए दीक्षित ने रामायण पड़ी |

ॐ साईं राम!!!


२१ दिसम्बर , १९११



मैं और दिनों की ही तरह सुबह जल्दी उठ गया , प्रार्थना की और दरवेश साहेब के साथ बातचीत करने बैठा | वे बोले कि उन एक स्वपन हुआ जिसमें उन्होंने तीन लड़कियों और एक अंधी महिला को उनके दरवाज़े को खटखटाते हुए देखा | उन्होंने उनसे पूछा कि ,  वे कौन हैं और उन्होंने उत्तर दिया कि वे लोग अपनी मौज मस्ती के लिए आई हैं | इस पर उन्होंने उनसे निकल जाने को कहा और इबादत शुरू कर दी | वे लडकियाँ और बड़ी औरत इबादत के उन शब्दों को सुनकर भाग खड़ी हुई |फिर उन्होंने कमरे और घर में और पुरे गावँ में सभी को दुआ की | उन्होंने मुझसे साईं साहेब से पूछने को कहा | मैं उनके लौटने के बाद दर्शन के लिए गया , और अभी ठीक से बैठा ही था कि साईं साहेब ने एक कहानी शुरू कर दी | उन्होंने कहा कि कल रात किसी चीज़ से उनके गुप्तांगों पर मार पड़ी , फिर उन्होंने तेल लगाया , इधर -उधर घूमें , शौच को गए और फिर आग के पास बेहतर महसूस किया | मैंने उनकी चरण सेवा की और लौटने पर वह कहानी दरवेश साहेब को सुनाई | उत्तर सपष्ट था | मध्यान्ह आरती के बाद मैं भावार्थ रामायण पड़ने बैठा और बाद में चावड़ी के पास साईं साहेव के दर्शन किए , और बाद में मैं फिर से चावड़ी में शेज आरती पर | फिर हमने भीष्म के भजन और रामज मारूति का अंग -संचालन व भाव मुद्रा देखी | फिर उसके बाद में श्री दीक्षित ने रामायण पड़ी |
ॐ साईं राम!!!


२२ दिसम्बर , १९११


मैं काकड़ आरती में जाने के लिए सुबह जल्दी उठ गया , मगर माधवराव देशपांडे के द्वारा की गयी एक टिप्पणी के कारण मैंने नहीं जाने की सोची , लेकिन बाद में माधव राव खुद गए और मैं भी उनके साथ गया | साईं महाराज विशेष रूप से आनन्दित दिखाई पड़ रहे थे | और चुपचाप मस्जिद गए | हम सबने उनको अमन किया जब वे बाहर गए और बाद में फिर से जब वे मस्जिद में लौटे | शिंगणे और दरवेश साहेब णे आज जाने का प्रयास किया | लेकिन साईं महाराज णे आवश्यक अनुमति नहीं दी | दरवेश साहेब बीमार पड़ गए और उन्हें बुखार हो गया | डा. हाटे ने उनका इलाज किया | मेरे ख्याल से मैंने पहले कहा है की यहाँ एक टिपणीस अपनी पत्नी के साथ वास्तव्य कर रहे हैं | वह महिला बीमार है और डा. हाटे उसके लिए जो कुछ कर सकते थे वह करते रहे हैं | राम मारुति महाराज भी उसके लिए यहाँ हैं | शाम को उसको एक दौरा पड़ा , लेकिन यह एक वशीकरण निकला | दीक्षित , माधवराव देशपांडे और अन्य लोग उसे देखने गए | वह जिस घर में रहती है उसके पुराने मालिक और दो महारों के वह कब्जें में है | उस मकान मालिक ने कहा कि वह उसे मार ही देता लेकिन साईं बाबा ने उसे ऐसा न करने की आज्ञा दी | महारों को भी साईं बाबा ने दूर रखा है | जब टिपणीस ने अपनी पत्नी को इस वाड़े में ले जाने की धमकी दी तो उन आत्माओं ने बहुत ईमानदारी से विनती की और ऐसा न करने के लिए कहा | उन आत्माओं ने कहा कि साईं बाबा उनकी पिटाई करेंगें | सामान्य दिनों की तरह भीष्म के भजन हुए , और बाद में मध्य रात्रि से कुछ पहले दीक्षित के द्वारा रामायण पाठ हुआ |

ॐ साईं राम!!!

२३ दिसम्बर , १९११ 


मैं सुबह जल्दी उठ गया लेकिन मुझे नींद आ गई और फिर से मैं बहुत देर से उठा | नीचे आने पर मैंने पाया कि शिंगणे उनकी पत्नी और दरवेश साहेब घर जाने की अनुमति पा चुके थे | इसीलिए शिंगणे बंबई और दरवेश साहेब कल्याण चले गए थे | ज़ाहिर है कि दरवेश साहेब आध्यात्मिक रूप से बहुत आगे बड़े हुए हैं क्योंकि साईं महाराज जहां दीवार टूटी हुई है वहां तक उन्हें विदा करने आए | मुझे उनकी बहुत याद आती है क्योकि हम लोगों के बीच लम्बी बातें होती थी | बंबई के सोलीसिटर श्री मंत्री अपने चार भाईयों और बहुत सारे बच्चों के साथ कल आए | वे बहुत ही भले व्यक्ति हैं | और हम बात-चीत करने बैठे | श्री महाजनी जिन्हें मैं पिछले साल मिला था , कल आए और बहुत अच्छे फल और साईं बाबा के लैम्प के लिए कांच के ग्लोब लाए | भयंदर  के श्री गोवर्धन दास भी यहाँ हैं | वे बहुत अच्छे फल चावडी में साईं  महाराज के कक्ष के ले रेशमी पर्दे और जो छत्र , चँवर , पंखें ले जाते है , उन स्वयंसेवियों के लिए नए परिधान लेकर आए | वे बहुत ही धनी कहे जाते हैं | माधव राव देशपांडे मेरी पत्नी व लड़के के बीच दीक्षित वाड़े में रहने के बारे में थोड़ा बेमतलब का मतभेद हुआ | साईं बाबा बोले कि वाड़ा उनका अपना है , और न तो दीक्षित का है और न ही माधव राव का | तो मामला अपने आप सुलझ गया | मैं साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन नहीं कर पाया और उनकी मस्जिद में लौटने के बाद मैंने उनका अभिवादन किया | उनहोंने मुझे फल दी और अपनी चिलम से काश दिया | दोपहर में खाने के बाद मैं थोड़ा सोया और फिर आज मिले हुए दैनिक समाचार पत्रों को पड़ने बैठा | वामन राव पटेल ने एल .एल .बी . की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है , डा. हाटे भी इसमें निकल जाते ऐसा मैंने चाहा | साईं महाराज कहते है - उसे बहुत अच्छी खबर मिले गी | टिपणीस ने अपना ठिकाना बदल लिया है और उसकी पत्नी बेहतर है | वह उतनी बेचैन नहीं जैसे पहले रहती थी | राम मारुति बुवा अभी भी यही हैं | हम शेज आरती के लिए गए | शोभा यात्रा बहुत ही प्रभाव पूर्ण थी और नए पर्दे और परिधान भी बहुत सुन्दर लगे | मैंने इसका बहुत आनन्द उठाया | कैसी दयनीय बात है कि इस तरह की कीमती भेंट देना मेरे बस में नहीं है | ईश्वर महान है | रात को भीष्म ने भजन किए और दीक्षित ने रामायण पड़ी |

ॐ साईं राम!!!

२४ दिसम्बर १९११


सुबह मैं जल्दी उठ गया और काकड़ आरती में गया | लौट कर मैंने प्रार्थना की और चहलकदमी की | श्री मंत्री को वापस जाने की अनुमति मिल गयी . इसीलिए वे अपने पुरे परिवार के साथ लगभग हर एक को विदा कह कर चले गए | वे बहुत -बहुत भले आदमी हैं | वामन राव पटेल भी चला गया | उसके बाद बड़ी संख्या में दर्शनार्थी भी आए | उन लोगों में अनुसूयाबाई नाम की एक महिला थी | वह अध्यात्मिक रूप से विकसित लगी और साईं महाराज ने उनसे बहुत सम्मानपूर्वक व्यवहार किया और उन्हें चार फल दिए | बाद में उन्होंने एक आदमी की कहानी सुनाई जिसके पांच लड़के थे उनमें से चार ने बंटवारे की मांग की , जो उन्हें मिल गया | इन चार में से दो ने पिता के साथ मिल जाने का निश्चय किया उस पिता ने माँ से इन दोनों में से एक को जहर देने को कहा और उसने उनका कहना मान लिया | दूसरा एक ऊँचे पेड़ से गिर पड़ा | घायल हुआ और मरने ही वाला था लेकिन पिता के द्वारा उसे करीब बारह साल जीने की अनुमति मिली तब तक उसके एक लड़का और एक लडकी हुए और फिर वह मर गया | साईं बाबा ने पांचवे पुत्र के बारे में कुछ नहीं कहा और मुझे यह कहानी अधूरी सी लगी | दोपहर के भोजन के बाद मैं थोड़ी देर लेट गया और फिर रामायण पड़ने बैठा | शाम को रोजाना की तरह हम चावड़ी के सामने साईं साहिब को नमन करने गए और रात को भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई | डा. हाटे अभी भी इधर है और बहुत अच्छे आदमी है | श्री महाजनी भी यहाँ है |

ॐ साईं राम!!!

२५  दिसम्बर १९११


सुबह प्रार्थना के बाद मैंने सो महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए और श्री महाजनी और अन्य लोगों के साथ बातचीत करने बैठा | काफी अतिथि चले गए व और बहुत आए , यहाँ  सब कुछ अति व्यस्त दिखाई पड़ने लगा | श्री गोवर्धन दास ने रात्रि भोज दिया और यहाँ लगभग हर एक को निमंत्रित किया जो साईं महाराज के दर्शन के लिए आए थे | मेरे बेटे बलवंत  को कल रात एक स्वप्न आया जिसमें उसका सोचना है कि उसने साईं महाराज और श्री बापूसाहेब जोग को हमारे एलीचपुर वाले मकान में देखा | उसने साईं महाराज को नैवेद्य अर्पण किया |   उसने मुझे सपने के बारे में बतलाया और मैंने इसे केवल काल्पनिक समझा , लेकिन आज उन्होंने बलवंत को बुलाया और कहा , " मैं कल तुम्हारे घर गया और तुमने मुझे खाना खिलाया लेकिन दक्षिणा नहीं दी | अब तुम्हे पच्चीस रूपये देने चाहिए " | इसी लिए बलवंत वापिस अपने ठिकाने में आया और माधवराव देशपांडे केसाथ जा कर दक्षिणा भेंट की | मध्यान्ह आरती में साईं महाराज ने मुझे पड़े और फलों का प्रसाद दिया और मुझे बहुत ही स्पष्ट संकेत कर के झुकाने के लिए कहा | मैंने तुरंत ही साष्टांग प्रणाम किया | आज नाश्ते में बहुत देर को गयी , और शाम चार बजे तक भी पूरा नहीं हुआ , मैंने इसे गोवर्धन दास के साथ , बल्कि कहूँ तो हमारे ठिकाने के पास ही उनके खर्चे से लगे पंडाल में लिया | उसके बाद मुझे बहुत सुस्ती आने लगी और बातचीत करने बैठा | हमने साईं महाराज को शाम को दोनों बार देखा , जब वे रोज की तरह सैर पर निकले और फिर से जब उन्हें भजन शोभा यात्रा केसाथ चावड़ी ले जाया गया | कोंडा जी फकीर की लडकी आज रात चल बसी | उसे हमारे ठिकाने के पास दफनाया गया | भीष्म के अपने भजन हुए और दीक्षित ने रामायण पडी |
ॐ साईं राम!!!

२६  दिसम्बर १९११


मैं जल्दी उठ गया और काकड़ आरती में सम्मिलित हुआ , साईं महाराज कुछ असामान्य भाव में थे , उन्होंने अपना सटका लिया और उससे चारों तरफ की जमीन को ठोक कर देखा | जब तक वे चावड़ी की सीड़ियों से उतरे दो बार वे पीछे और आगे गए और उग्र भाषा का प्रयोग किया | लौट कर मैंने प्रार्थना की , स्नान किया और अपने कमरे के सामने वाए बरामदे में बैठा | मैंने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए | श्री गोखले आए जो पुणे में वकील है वे मेरी पत्नी से शेंगांव में पहले मिले है जब गणपति बाबा इस भोतिक संसार में कार्य कर रहे थे | उनके साथ भारतीय खिलौनों का एक विक्रेता और कोइ अन्य था | वे मुझे मध्यान्ह आरती के बाद मिले जब मैं भोजन कर चुका था | मैं दिन के तीसरे पहर में थोड़ी देर के लिए लेट गया और फिर महाजनी , डा.हाटे और अन्य लोगों के साथ बातचीत करने बैठा | हमने साईं महाराज को दोपहर में चावड़ी में देखा और सांझ ठलने पर जब वे सैर पर निकले , तब वे बड़े की कृपालु हुए | आज उन्होंने मेरे पुत्र बलवंत से बात की और बाकी सभी को चले जाने के लिए कहने के बाद भी उसे बैठाए रखा | उन्होंने उसे किसी भी मेहमान से मिलाने के लिए मना किया और उनका ध्यान रखने के लिए कहा और इसके बदले में { साईं बाबा } उसका ध्यान रखे गे | माधव राव देशपांडे बीमार है उन्हें बहुत जुकाम है और अगर उन्हें वास्तव में बिस्तर में पड़े हुए न भी माना जाए तो भी वे बहुत देर से लेटे हुए है | शाम को और दिनों की ही तरह भीष्म के भजन हुए और उसके बाद दीख्सित की रामायण | श्री भाटे भी वहां पुराण सुनने के लिए उपस्थित थे | आज हमने सुन्दर काण्ड आरम्भ किया |
ॐ साईं राम!!!

२७ दिसम्बर , १९११ 



मैं कल रात ठीक से नहीं सोया लिकिन सुबह जल्दी उठ गया , प्रार्थना की , स्नान किया और बाकी दिनों से जल्दी तैयार हो गया | मध्यान्ह आरती के बाद लगभग तीन बजे मैंने नाश्ता किया और फिर लेट गया और मुझे अच्छी नींद आई | दोपहर में बहुत लोगों ने साईं महाराज से मिलने का प्रयास किया लेकिन उन्हें बात करने की इच्छा नहीं थी , और उन्होंने सभी को वापस भेज दिया | इसीलिए मैं नहीं गया और पड़ने के लिए बैठा | हम सब ने सांझ ढलने पर उनके दर्शन किए जब वे अपनी सैर के लिए निकले और शेज आरती पर | आज भीष्म के भजन अन्य लोगों के द्वारा इसमें गाने के कारण बहुत लम्बे चले | एक मुसलमान नवयुवक ने अपने गीत से मुझे काहीत कर दिया | फिर दीक्षित के द्वारा रामायण हुई |


ॐ साईं राम!!!


२८ दिसम्बर , १९११ 

सुबह मेरे प्रार्थना करने के बाद , डाक्टर हाटे और श्री आर.डी.मोरेगावँकर को वापस जाने की अनुमति मिल गयी | इसी लिए वे लोग रवाना हो गए और उसके तुरंत बाद नानासाहेब चांदोरकर सी. वी. वैद्य और श्री नाटेकर 'हंस' आए | मैं श्री नाटेकर के साथ बहुत देर तक बातचीत करने बैठा , और फिर नानासाहेब और वैद्य से मिलने गया जो नजदीक ही एक तम्बू में ठहरे है | हंस ने हिमालय में बहुत समय तक यात्रा की हैं वे एक दीक्षित और स्वीकृत शिष्य है | इसीलिए उनका संभाषण बहुत ही स्फूर्ति दायक हैं | सी. वी. वैद्य को एक आँख में कुछ परेशानी है | वह सुर्ख लाल हो गयी है | श्री चांदोरकर हमेशा की तरह प्रसन्न चित्त हैं | हम दोपहर की आरती में उपस्थित हुए | त्रियम्बक राव , जिन्हें मारुती कहा जाता है बहुत नाराज़ है | आज वह पूजा में उपस्थित नहीं हुए और काफी रूठे हुए थे | माधव राव देशपांडे आज बेहतर हैं | वे लगभग पूरा दिन खड़े ही रहे | दीक्षित भी अतिथियों को बहुत लगन से निभा रहे हैं , जो बहुत भारी संख्या में हैं | श्री चांदोरकर आज कल्याण गए और बोले कि वे अगले रविवार को लौटेगे | मैं दोपहर में हंस से बाते करने बैठा और लगभग साईं महाराज के सैर पर निकलने के समय दर्शन करने तक बैठा रहा | आज उन्होंने किसी को भी वहां बैठने की अनुमति नहीं दी और हर किसी को ' उदी ' देकर भेज दिया | हंस राधाकृष्णआई के पास गए और शाम वही बिताई | वे बहुत अच्छा गाती हैं | और बहुत उत्तम भजन करती है | हमने भीष्म के भजन सुने जिसमें कई लोगों ने भाग लिया और फिर दीक्षित की रामायण हुई | मौरसी से दादा गोले यहाँ आए हैं | मेरे एक मुवक्किल रामाराव भी यहाँ हैं | वे मुझसे एक अपील लिखवाना चाहते हैं , उसके लिए बिलकुल समय नहीं हैं |

ॐ साईं राम

२९ दिसम्बर , १९११ 



मुझे उठने में थोड़ी देर हुई और फिर श्री नाटेकर , जिन्हें हम 'हंस ' और स्वामी कहते हैं , के साथ मैं बात चीत करने के लिए बैठ गया | मैं पूजा वगैरह समय पर समाप्त नहीं कर पाया और साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन भी नहीं कर पाया | जब वे मस्जिद लौटे तब मैंने उनके दर्शन किए| हंस मेरे साथ थे | साईं महाराज बहुत अच्छे भाव में थे और उन्होंने एक कहानी शुरू की जो कि बहुत बहुत प्रेरक थी लेकिन दुर्भाग्य वश त्रिम्बक राव जिसे हम मारुति कहते है , ने अत्यंत मुर्खता वश बीच में ही टोक दिया और साईं महाराज ने उसके बाद विषय बदल दिया | उन्होंने कहा कि एक नौजवान था , जो भूखा था और वह लगभग हर लिहाज से जरूरतमंद था | वह नौजवान आदमी इधर- उधर घुमने के बाद साईं साहेब के पिता के घर गया और जहां उसका बहुत अच्छी तरह सत्कार हुआ और उसे जो भी चाहिए था वह दिया गया | लड़के ने वहां कुछ समय बिताया , मोटा हो गया , कुछ चीजे जमा कर ली , गहने चुराए , और इन सब का एक बंडल बना कर जहां से आया था वहीं लौट जाना चाहा | वास्तव में वः साईं साहेब के पिता के घर में ही पैदा हुआ था और वही का था लेकिन इस बात को नहीं जानता था | इस लड़के ने बंडल गली के एक कोने में डाल दिया लेकिन इससे पहले कि वे बाहर निकले , देख लिया गया | इसी लिए उसे देर करनी पडी | इस बीच में चोर उसके बंडल से गहने ले गए | ठीक निकलने से पहले उसने उन्हें गायब पाया इसी किए वह घर में ही रुक गया और कुछ और गहने इकठ्ठे किए और फिर चल पडा , लेकिन रास्ते में लोगो ने उसे उन चीज़ों को चुराने के संदेह में कैद कर लिया | इस मोड़ पर आकर कहानी का विषय बदल गया और वह अचानक ही रुक गयी |

मध्यान्ह आरती से लौटने के बाद मैंने हंस से मेरे साथ भोजन लेने का आग्रह किया और उसने मेरा निमंत्रण स्वीकार कर लिया | वह सीधा साधा बहुत ही भला आदमी हैं , और खाना खाने के बाद उसने हमें हिमालय में अपने भ्रमण के बारे में बता या , वह किस तरह मानसरोवर पहुचाँ , किस तरह उसने वहां एक उपनिषद का गायन सुना , किस तरह वहपद चिन्हों के पीछे गया , किस तरह वह एक गुफा में पहुचाँ , एक महात्मा को देखा , किस तरह उस महात्मा ने उसी दिन बंबई में हुई तिलक ही सना के बारे में बात की , किस पतः उस महात्मा ने उसे अपने भाई { बड़े सहपाठी } से मिलवाया , किस तरह आखिरकार वह अपने गुरु से मिला और ' क्रतार्थ ' हुआ | बाद में हम साईं बाबा के पास गए और मस्जिद में उनके दर्शन किए | उन्होंने आज दोपहर मेरे पास सन्देश भेजा कि मुझे यहाँ और दो महीने रुकना पडेगा | दोपहर में उन्होंने अपने सन्देश की पुष्टि की और फिर कहाँ कि उनकी ' उदी ' में महत अध्यात्मिक गुण है | उन्होंने मेरी पत्नी से कहाँ कि गवर्नर एक सरकारी नौकर के साथ आया और साईं महाराज की उससे अनबन हुई और उसे उन्होंने बाहर निकाल दिया और आखिरकार गवर्नर के साथ समझोता कर लिया | भाषा अत्यंत संकेतात्मक है इसीलिए उसकी व्याख्या करना कठिन है | शाम को हम शेज आरती में उपस्थित हुए और उसके बाद भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई |



जय साईं राम!!!
ॐ साईं राम!!!


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