शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण... अधिक जानने के लियें पूरा पेज अवश्य देखें

शिर्डी से सीधा प्रसारण ,... "श्री साँई बाबा संस्थान, शिर्डी " ... के सौजन्य से... सीधे प्रसारण का समय ... प्रात: काल 4:00 बजे से रात्री 11:15 बजे तक ... सीधे प्रसारण का इस ब्लॉग पर प्रसारण केवल उन्ही साँई भक्तो को ध्यान में रख कर किया जा रहा है जो किसी कारणवश बाबा जी के दर्शन नहीं कर पाते है और वह भक्त उससे अछूता भी नहीं रहना चाहते,... हम इसे अपने ब्लॉग पर किसी व्यव्सायिक मकसद से प्रदर्शित नहीं कर रहे है। ...ॐ साँई राम जी...

Friday 18 July 2014

Khaparde's Daily Diary in Hindi


खापर्डे शिरडी डायरी
शिरडी में एक सप्ताह का वास्तव्य
(Short Stay From 5th Dec 1910 to12th Dec1910)






ॐ साईं राम

५ दिसम्बर १९१०

शाम के लगभग चार बजे हम शिरडी पहुँचें 
हम रावबहादुर साठे द्वारा लोगों की सुविधा के लिए बनवाए वाड़े में ठहरे 
माधव राव देशपांडे बहुत मददगार


हुए उनहोंने हमारी सहायता की और हमारा अतिथि की तरह सत्कार किया 
वाड़े में तात्या साहेब नूलकर अपने परिवार के साथ ,बापूसाहेब जोग और बाबा साहेब सहस्त्र बुद्धे हैं 
पहुँचने के तुरंत बाद हम सभी साईं महाराज के दर्शन के लिए गए 
वे मस्जिद में थे 
प्रणाम करने के बाद मैनें और मेरे पुत्र ने अपने साथ लाए हुए फल और उनके आग्रह पर कुछ रूपये भेंट किए 
साईं साहेब तब बोले कि पिछले दो बरस से ज्यादा समय से वो ठीक नहीं रहे , और ये भी कि, वो केवल ज्वार की रोटी और थोड़ा पानी लेते रहे 
उन्हों ने अपने पाँव पर एक छोटा सा घाव दिखलाते हुए कहा कि उसमे कोई कीड़ा पद जाया , उसे निकाल तो दिया लेकिन निकालने में से वह बीच में टूट गया , और फिर से पनप गया , वगैरह वगैरह 
वे बोले कि उन्होंने सुना है कि जब तक वे उस जगह वापस नहीं जाएँगे जहाँ से वे आए थे तब तक उनके लिए ठीक नहीं रहेगा 
उनहोंने इस बात कि अपने ध्यान में रखा तो है लेकिन उन्हें अपने जीवन से अधिक अपने लोगों की फिक्र है 
वे बोले कि लोगों ने उन्हें परेशान कर रखा है इसीलिए उन्हें कोई आराम नहीं मिलता 
इस बारे में कुछ नहीं किया जा सकता 
उसके बाद उन्होंने हमें जाने के लिए कहा और हमने वैसा ही किया 
शाम के समय वे वाड़ें के पास से निकले , हम गए और उन्हें प्रणाम किया 
मैं और माधवराव देशपांडे एक साथ थे 
जब हमनें प्रणाम किया उसके बाद वे बोले - " वाड़े में जाओ और चुपचाप बैठो 
" इसीलिए मैं और माधवराव लौट आए 
हम सब बातचीत करने बैठे 
उनके पास बतलाने के लिए बहुत से चमत्कार हैं 

जय साईं राम!!! 

ॐ साईं राम!!!

ॐ साईं राम

६ दिसम्बर ,१९१०

सुबह मैंने सैर की और स्नान के बाद हमने साईं महाराज को जाते हुए देखा
उन्हें सर के ऊपर एक बड़ी कड़ाईदार छतरी तानी हुई थी
बाद में हम मस्जिद गए
साईं बाबा कुछ उत्साहित से दिखाई पड़े
फिर वो उठे , वहाँ एकत्रित भोजन को बाँटा और उदी देने के बाद हमसे जाने का अनुरोध किया
हमने वैसे ही किया
दोपहर का भोजन करीब ढाई बड़े तक नहीं परोसा गया
इसके बाद हम बात चीत करने बैठे
शाम को जब वे सैर पर निकले तब हमने साईं महाराज के दर्शन किए
बाद में हम चावड़ी गए , साईं महाराज आज रात वहाँ सोते है
उनके साथ राजसी छत्र , चांदी के डंडे , चँवर और पंखे आदि थे
वह स्थान बहुत अच्छी तरह से प्रकाशमय था
राधा कृष्णा नाम की महिला दीप लेका बाहर आईं
मैंने उन्हें दूर से देखा
माधवराव देशपांडे ने बताया की वे कल बाहर जाएँगे और परसों लौटेंगे
उन्होंने साईं महाराज से जाने की आज्ञा माँगी जो उन्हें मिल गई

जय साईं राम!!!
ॐ साईं राम!!!


ॐ साईं राम


७ दिसम्बर , १९१०


सुबह मेरे प्रार्थना करने के बाद श्री बालासाहेब भाते , जो एक निव्रत्त मामलेदार हैं , वाड़े में आए और हमसे बातचीत करने बैठे 
वे यहाँ पिछले कुछ समय से रह रहे हैं और उनके चेहरे प् एक अदभुत शान्ति है 
हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए और दोपहर में उनके पास मस्जिद गए 
मैं , बाबासाहेब सहस्त्रबुद्धे , मेरा पुत्र बाबा , बापूसाहेब जोग और उनके सब बच्चे इक्कठे गए और वहाँ बैठे 
साईं माराज बड़े ही विनोदी भाव में दिखाई पड़ रहे थे 
उन्होंने बाबासाहेब सहस्त्रबुद्धे से पूछा कि क्या वे बंबई से आए हैं 
बाबासाहेब सहस्त्रबुद्धे ने इसका उत्तर "हाँ " में दिया 
बाबासाहेब सहस्त्रबुद्धे से फिर पूछा गया कि , क्या वे बंबई वापस जाएँगे 
उन्होंने फिर से इस बात का उत्तर ' हाँ ' में दिया , लेकिन ये भी कहा कि वे वहाँ रहने के बारे में निश्चित नहीं है क्यों कि यह परिस्थितियों पर निर्भर करे गा 
साईं महाराज इस पर बोले - ' हाँ , कि ये सच है कि तुम्हारे हाथ में बहुत सारे काम हैं , अभी और भी करने हैं 
तुम्हें यहाँ करीब चार- पाँच दिन रहना चाहिए 
तुम यहीं रहोगे , यह तुम खुद देख लेना 
जो अनुभव होते हैं वे सच हैं 
वे काल्पनिक नहीं हैं 
मैं यहाँ हज़ारों साल पहले था 
' फिर साईं महाज मेरी ओर मुड़े और कोइ नई बात के बारे में बोलने लगे 
वे बोले - " ये दुनिया भी मजेदार है , सभी मेरी प्रजा है , मैं सबको सामान रूप से देखता हूँ , लेकिन कुछ चोर बन जाते है , और मैं उनके लिए क्या कर सकता हूँ ? जो लोग खुद मौत के नज़दीक है वे दूसरों की मौत चाहते है और उसकी तैयारी करते हैं 
ऐसे लोगों ने मुझे बहुत नाराज़ किया 
उन्होंने मुझे अच्छी - खासी चोट पहुँचाई , लेकिन मैंने कुछ नहीं कहाँ 
मैं चुप रहा 
ईश्वर बहुत महान है उसके अधिकार सब जगह हैं वे सब से शक्तिशाली है 
हर किसी को उसी स्थिति में खुश रहना चाहिए जिसमें ईश्वर उसको रखता है 
लेकिन मैं बहुत सशक्त हूँ 
मैं यहाँ आठ-दस हज़ार साल पहले था 
'' मेरे पाथर ने उनसे कहानी सुनाने के लिए कहा जैसी उन्होंने पहले सुनाई थी 
साईं महाराज ने पूछा कौनसी कहानी थी 
मेरे पाथर ने जवाब दिया कि वह कहानी थीं भाईयों के बारे में थी जो एक मस्जिद में गए 
उनमें से एक ने बाहर जा कर भिक्षा माँगनी चाही 
बाकी भाई उसे यह करने देना नहीं चाहते थे , क्योंकि भिक्षा में माँगा हुआ खाना अशुद्ध होता और उनका चौका दूषित कर देता 
तीसरे भाई ने उत्तर दिया कि अगर वह भोजन उनका चौका खराब कर दे तो उसकी टाँगे काट देनी चाहिए , वगैरह 
साईं महाराज बोले वह बहुत अच्छी कहानी थी 
वे एक और सुनाएँगे जब उन्हें सुनाने का मन करेगा 
मेरे बेटे ने कहा कि उसे नहीं मालूम कि ऐसा कब होगा 
और अगर उनका मन हमारे जाने के बाद करे तो उसका क्या फ़ायदा ? इस पर साईं साहेब ने उससे कहा कि वह भरोसा रखे कि कहानी उसके जाने से पहले सुनाई जाएगी 
मैंने उनसे पूछा कि वे कल आराज़ क्यों थे , और उन्होंने जवाब दिया कि वे नाराज़ थे क्योंकि तेली ने कुछ कहा था 
तब मैंने पूछा कि आज खाना परोसने के समय वे ऐसा कहते हुए क्यों चिल्लाए - " मत मै , मत मार ", उन्हों कहा कि वे इसलिए चिल्लाए थे क्योंकि पाटिल के परिवार वाले आपस में झगड़ रहे थे 
साईं साहेब ने ऐसी अनोखी मधुरता से ये बात कही और वे ऐसे असाधारण ओज के साथ के बार मुस्कुराए कि यह बातचीत मेरी स्मृति में हमेशा अंकित रहेगी 
बदकिस्मती से तभी कुछ और लोग आ गए और बातचीत बीच में ही रुक गई 
हमें इस बात का भुत अफसोस हुआ लेकिन कुछ हो नहीं सकता था 
हम इस बारे में बात करते हुए लौट आए 
तात्यासाहेब नूलकर बातचीत के पहले हिस्से में मौजूद नहीं थे , लेकिन बाद में आए 
बालासाहेब भाटे शाम को आए और हम सब फिर बात करने बैठे 


जय साईं राम!!!
 ॐ साईं राम!!! 

ॐ साईं राम

८ दिसम्बर १९१०

सुबह के वक्त , पूजा के बाद हमने साईं साहेब के और दिनों की तरह दर्शन किये , जब वे बाहर जा रहे थे
बाद में हम दोपहर में उनको देखने गए लिकिन हमें लौटना पड़ा क्योंकि वे अपने पैर धो रहे थे
बाबासाहेब सहस्त्रबुद्धे , मैं , मेरा पुत्र और एक कोई एनी सज्जन , जो आज सुबह ही आए थे उस दल में शामिल थे जिसे वापस लौटना पड़ा
तात्या साहेब नूलकर हमारे साथ नहीं आए थे
बाद में हम फिर से गए , लेकिन साईं साहेब ने हमें जल्दी ही वापिस कर दिया इसीलिए हम लौट आए
वे कुछ सोचने में बहुत व्यस्त दिखलाई पड़े
रात को साईं साहेव चावडी में सोए और हम शोभा यात्रा देखने गए
वह बहुत अच्छी थी
जिन सज्जन के बारे में ऊपर कहा गया था , वे एक पुलिस अफसर हैं , मेरे ख्याल से हेड कांस्टेबल
उन पर घुसखोरी का आरोप था और सेशन कोर्ट ने उन पर मुकद्दमा चलाया
उन्हेंने संकल्प किया था कि अगर वे इस मुकद्दमे में छुट जाए तो वह साईं महाराज के पास आएगे
वह छुट गए और अपना संकल्प पूरा करने आये हैं
उनको देख कर साईं महाराज बिगड़े और पुचा -- " तुम कुछ और दिनों वहाँ क्यों नहीं ठहरे ?? बेचारे लोग निराश हुए होंगे
'' उन्हेंने यह बात दो बार कहीं
बाद में हमें पता चला कि उन सज्जन के मित्रों ने उनको रुकने के लिए बहुत कहा लिकिन उन्हेंने उनके आग्रह को नहीं माना
उन्हेंने साईं साहेब को पहले नहीं देखा था
और उनके मित्रों ने निश्चय ही उन्हें कभी नहीं देखा होगा
आश्चर्य है कि साईं महाराज ने उनको जान लिया और वह सब कहा

जय साईं राम!!!
ॐ साईं राम!!!


ॐ साईं राम


८ दिसम्बर १९१०


सुबह के वक्त , पूजा के बाद हमने साईं साहेब के और दिनों की तरह दर्शन किये , जब वे बाहर जा रहे थे 
बाद में हम दोपहर में उनको देखने गए लिकिन हमें लौटना पड़ा क्योंकि वे अपने पैर धो रहे थे 
बाबासाहेब सहस्त्रबुद्धे , मैं , मेरा पुत्र और एक कोई एनी सज्जन , जो आज सुबह ही आए थे उस दल में शामिल थे जिसे वापस लौटना पड़ा 
तात्या साहेब नूलकर हमारे साथ नहीं आए थे 
बाद में हम फिर से गए , लेकिन साईं साहेब ने हमें जल्दी ही वापिस कर दिया इसीलिए हम लौट आए 
वे कुछ सोचने में बहुत व्यस्त दिखलाई पड़े 
रात को साईं साहेव चावडी में सोए और हम शोभा यात्रा देखने गए 
वह बहुत अच्छी थी 
जिन सज्जन के बारे में ऊपर कहा गया था , वे एक पुलिस अफसर हैं , मेरे ख्याल से हेड कांस्टेबल 
उन पर घुसखोरी का आरोप था और सेशन कोर्ट ने उन पर मुकद्दमा चलाया 
उन्हेंने संकल्प किया था कि अगर वे इस मुकद्दमे में छुट जाए तो वह साईं महाराज के पास आए गे 
वह छुट गए और अपना संकल्प पूरा करने आये हैं 
उनको देख कर साईं महाराज बिगड़े और पुचा -- " तुम कुछ और दिनों वहाँ क्यों नहीं ठहरे ?? बेचारे लोग निराश हुए होंगे 
'' उन्हेंने यह बात दो बार कहीं 
बाद में हमें पता चला कि उन सज्जन के मित्रों ने उनको रुकने के लिए बहुत कहा लिकिन उन्हेंने उनके आग्रह को नहीं माना 
उन्हेंने साईं साहेब को पहले नहीं देखा था 
और उनके मित्रों ने निश्चय ही उन्हें कभी नहीं देखा होगा 
आश्चर्य है कि साईं महाराज ने उनको जान लिया और वह सब कहा 


जय साईं राम!!! 
ॐ साईं राम!!!

ॐ साईं राम

९ दिसम्बर , १९१०


मैं और मेरे पुत्र ने आज जाना चाहा
सुबह पूजा के बाद हमेशा की तरह हम साईं महाराज के दर्शन को गए
उनहोंने मेरे पुत्र से पूछा कि क्या वे जाना चाहता है , और फिर बोले कि हम जा सकते है
हमने सोचा कि हमें जाने की आज्ञा मिल गयी और हम चलने की तैयारी करने लगे
मेरे पुत्र ने सारी चीज़ें बाँधीं और एक गाडी जाने के लिए और दूसरी सामन ले जाने के लिए तैयार की
दोपहर में रवाना होने से पहले हम औपचारिक रूप से हम साईं महाराज से मिलाने गए
मुझे देखकर साईं महाराज बोले , " क्या तुम्हारा वास्तव में जाने का इरादा है ?? " मैंने उत्तर दिया - " मैं जाना चाहता हूँ लेकिन अगर आपकी आज्ञा न हो तो नहीं
" उनहोंने कहा , " तुम कल या परसों जा सकते हो
वडा तो हमारा घर है और जब मैं यहाँ हूँ तो किसी को भी डराने की ज़रूरत नहीं
यह हमारा घर है और तुम्हें भी इसे अपना ही घर समझना चाहिए
" मैं रुकने के लिए मान गया और हमने अपने रवाना होने के सारे प्रबंध रोक दिए
हम बातचीत करने के लिए बैठ गए
साईं महाराज बहुत आनन्द में थे और उनहोंने बहुत सारी अच्छी बातें कहीं लेकिन शायद मैं उन्हें समझ नहीं पाया

जय साईं राम!!!
ॐ साईं राम!!!
ॐ साईं राम

१० दिसम्बर , १९१०

सुबह की प्रार्थना के बाद मैंने अपने पुत्र से बाबा से हमारे जाने के बारे में साईं महाराज को कभी भी कुछ न बोलने के लिए कहा
वे सब जानते है , और हमें कब भेजना है वे जानें
रोज की तरह हमने साईं साहेब को देखा जब वे बाहर जा रहे थे , और बाद में हम लोग मस्जिद गए , साईं साहेब बहुत ही आनन्दित थे और उनहोंने एक बालिका के पूर्वजन्म की कहानी सुनाई जो उनके साथ खेल रही थी
उनहोंने कहा कि वह एक कलाकार थी और मर गई और साधारण रूप से दफना दी गई
साईं साहेब उस रास्ते से गुजरे और उसकी कब्र के पास एक रात ठहरे
फिर वह उनके साथ चली उन्हींने उसे एक बाबुल के पेड़ में रखा और फिर उसे यहाँ ले आए
उनहोंने कहा पहले वे कबीर थे और सूत कातते थे
बातचीत अत्यंत सुखद थी
दोपहर में वर्धा के श्रीधर परांजपे अपने साथ श्री पंडित , एक अन्य चिकित्सक और एक तीसरे सज्जन को लेकर आए
अहमदनगर के कनिष्ट अधिकारी श्री पटवर्धन भी उनके साथ थे
मेरा पुत्र और वे कालेज के पुराने सहपाठी हैं
वि सभी साईं साहेब के दर्शन को गए और हम सब उनके साथ थे
साईं साहेब ने उनके साथ वैसा ही व्यवहार किया जैसा वे हर किसी के साथ करते हैं
औ पहले तेली मारवाड़ी वगैरह के बारे में बोले
फिर वे इमारतों के बारे में बोले जो बनवाई जा रही हैं
और कहने लगे , '' दुनिया पागल हो गई हैं
हर आदमी ने बुरे सोच का एक अजीब रुख़ अपना लिया हैं मैंने कभी भी अपने आप को उनमें से किसी की बराबरी में नहीं रखा
इसीलिए वे क्या कहते है मैं कभी नहीं सुनता
और न ही जवाब देता हूँ
मैं क्या जवाब दूँ ? '' उसके बाद उनहोंने उडी वितरित ही और हमें बाड़े में लौट जाने को कहा
उनहोंने पटवर्धन कनिष्ट को संकेत किया और रोज़ की तरह 'कल' को रवानगी का दिन बतलाते हुए उसे रुकने के लिए कहा
मैं और बाबासाहेब सहस्त्रबुद्धे वाडे लौट आए
ऐसा लगता है कि परांजपे और उनके साथी राधा कृष्णा के पास गए
बापूसाहेब जोग की पत्नी बीमार चल रही है
उसे साईं साहेब जो कुछ कहते है उससे बहुत लाभ पहुंचा है , और उसे वे कोइ दवा नहीं देते
लिकिन ऐसा मालूम पड़ रहा है कि आज उसका धैर्य ख़त्म हो गया और उसने चले जाना चाहा
यहाँ तक कि बापूसाहेब जोग भी लाचार होकर उसको जाने देने के लिए मान गए
साईं साहेब ने उसके स्वास्थ के बारे में और वे कब जा रही हैं , कई बार ऐसी पूछताछ की
लेकिन शाम को बापूसाहेब जोग ने औपचारिक रूप से साईं साहेब से आज्ञा लेने की बात कही तो वह बोली कि अब वह पहले से ठीक महसूस कर रही है और अब नहीं जाना चाहती है -- हमें हैरानी हुई





जय साईं राम!!!
ॐ साईं राम!!!


ॐ साईं राम

११ दिसम्बर १९१०

सुबह प्रार्थना के बाद मैनें हाथ मुँह धोया ,बंबई के श्री हरिभाऊ दीक्षित और उनके कुछ अन्य साथी स्वर्गीय डाँ-आत्माराम पांडुरंग के पुत्र श्री तर्खड , और श्री महाजनी , जो अकोला के अण्णा साहेब महाजनी के चचेरे भाई हैं , के साथ रोज़ की तरह साईं साहेब के पास गए
आज की बातचीत महत्वपूर्ण थी और दो घटनाओं के कारण उल्लेखनीय थी,साईं महाराज ने कहा कि वे एक कोने में बैठा करते थे और उन्होंने अपने शरीर का निचला हिस्सा एक तोते से बदलना चाहा
ये अदला बदली हुई और उन्हें इस बात का अहसास नहीं हुआ
और एक साल में उन्होंने एक लाख रूपये गवा दिए
फिर उन्होंने एक खम्बे के पास बैठना शुरू किया और तब एक विशाल सर्प जागा ,और वह भुत क्रोधित था
वह ऊपर की ओर उछलता था और ऊपर से नीचे की ओर भी गिरता था
फिर उन्होंने इस विषय को बदल दिया और कहा कि वे एक जगह गए और वहां का पाटिल उन्हें तब तक जाने नहीं देता जब तक वे एक बागीचा न लगाएँ और उसमे से होता हुआ पैदल चलने के लिए एक पक्का मार्ग बनाएँ
वो बोले कि उन्होंने दोनों काम पूरे किए
उसी समय कुछ लोग वहां आए
उस आदमी से वे बोले , " मेरे सिवाय तुम्हारी देखभाल करने वाला कोइ नहीं है
" फिर चारों ओर देखते हुए उन्होंने कहा कि , वह उनकी संबंधी है और रोहिला से ब्याही हुई है जो आदमियों को लुटते हैं
फिर वे कहने लगे , दुनिया खराब है लोग अब वैसे नहीं जैसे वे पहले होते थे
पहले वे शुद्ध आचरण वाले और विश्वसनीय होते थे
अब लोग एक दुसरे का विश्वास न करने वाले और किसी भी बात का गलत पक्ष समझने वाले हो गए है , और उसके बाद उन्होंने कुछ और भी कहाँ जो मैं समझ नहीं पाया
ये उनके पिटा , दादा और फिर उनके पिटा और दादा बनाने के बारे में था
अब घटनाओं के बारे में ऐसा है , श्री दीक्षित फल कै, साईं साहेब ने कुछ खाए और बाकी और लोगों में बाँट दिए
बाला साहेब जो एह तालुका के मामेदार रहे थे वहां थे आयर बोले कि साईंमहाराज केवल एक किस्म के ही फल दे रहे थे
मेरे पुत्र औने मित्र पटवर्धन को बतलाया कि साईं महाराज ने मेरे जिस भक्ति भाव से वे फल अर्पित किए गए थे उसी के अनुपात में उन्हें स्वीकार या अस्वीकार किया
मेरे पुत्र , बाबा ने यश बात मुझे और पटवर्धन को भी बतलाने की कोशिश की
इससे थोड़ा शोर हुआ और साईं महाराज ने मुझको ऐसी नज़रों से देखा जो अदभुत रूप से चमक रही थी और क्रोध की चिंगारी लिए हुई थी
उन्होंने मुझसे इस सवाल का जवाब माँगा कि मैंने क्या कहा था
मैंने उत्तर दिया कि मैं कुछ नहीं कह रहा था और बच्चे आपस में बात कर रहे थे
उन्होंने मेरे पुत्र और पटवर्धन की ओर देखा और फिर तुरंत ही अपना रुख बदल लिया
आखिर में बाला साहेब मिरीकर ने ऐसा कहा कि साईं महाराज सारा वक्त हरिभाऊ दीक्षित से बात कर रहे थे
दोपहर में हम लोग जब भोजन कर रहे थे श्री मिरीकर के पिताजी आए जो अहमदनगर में इनामदार और विशेष मजिस्ट्रेट हैं
वे पुराणी चाप के बहुत सम्मानीय व्यक्ति हैं
मुझे उनकी बाते बहुत पसंद आई
शाम के समय हमने रोज़ की तरह साईं साहेब के दर्शन किए और हम रात क बात करने बैठे , और श्री नूलकर के पुत्र विस्वनाथ ने भजन किए जैसे वह हर रोज़ करता है

जय साईं राम!!!
ॐ साईं राम!!!


ॐ साईं राम

१२ दिसम्बर , १९१०

सुबह की प्रार्थना के बाद हमने साईं महाराज को हमने रोज़ाना की तरह निकलते हुए देखा और हर रोज़ की तरह आपस में बात करने बैठे
श्री दीक्षित ऐसा मालूम पड़ता है कि पुरी तरह से बदल गए हैं
और बहुत सारा समय उपासना में लगाते हैं और उनका स्वभाव हमेशा से ही नरम था , उसमें भी एक विचित्र मिठास आ गयी है जो पुरी तरह से उनके अंतर्मन की शान्ति के कारण है
इसके तुरंत बाद रावबहादुर राजाराम पन्त दीक्षित पुलगाँव से आए
उन्होंने बताया कि जब वे नागपुर से चले उनका शिरडी आने का कोइ विचार नहीं था , लेकिन पुलगाँव में अचानक ही उनका आने का इरादा बन गया ,और दरअसल उनकी यात्रा का निश्चय उन्होंने क्षण भर में ही कर लिया
मुझे उनको देखकर बहुत खुशी हुई
बाद में हम सब साईं साहेब के दर्शन को गए
मुझे थोड़ी देर हो गई और में उन्हें द्वारा बताई गई एक बहुत रोचक कहानी नहीं सुन पाया
वे किस्से -कहानियों से सीख देते है
यह एक ऐसे आदमी के बारे में थी जिसके पास एक सुन्दर घोड़ा था , वह कुछ भी करे लेकिन घोड़ा उसकी एक भी नहीं सुनता था
उसे सभी जगह ले गए और सब सामान्य प्रशिक्षण दिया गया लेकिन कोइ लाभ नहीं हुआ
आखिरकार , एक विद्वान ने सुझाव दिया कि उसे उसी जगह ले जाया जाए जहां से वह मूलरूप से लाया गया था
ऐसा की किया गया और उसके बाद से वह ठीक हो गया और बहुत उपयोगी हुआ
मैंने इस किस्से का केवल एक अंश ही सूना
फिर उन्होंने पुचा कि में कब जा रहा हूँ
मैंने कहा कि में तब जाऊँगा जब वे अपने आप मुझे जाने की आज्ञा दें
उन्होंने कहा , 'तुम आज भोजन करने के बाद जाओ ' और बाद में माधव राव देशपांडे के हाथों मेरे लिए प्रसाद के रूप में दही भेजा
मैंने उसे भोजन में लिया और उसके बाद तुरंत साईं साहेब के दर्शन पाने गया
जैसे ही में वहां पहुचाँ उन्होंने जाने के लिए अपनी आज्ञा को फिर से पक्का किया
मेरा पुत्र इस आज्ञा के आरे में निश्चित नहीं था इसलिए उसने फिर से खुल कर पुचा , और आज्ञा स्पष्ट शब्दों में दे दी गई
आज साईं महाराज ने दूसरों से दक्षिणा माँगी लेकिन मुझसे और मेरे पुत्र से कुछ नहीं लिया
मेरे पास पैसा बहुत कम था और ऐसा लगा कि उनको ये मालूम था
श्री नूलकर , श्री दीक्षित , श्री बापूसाहेब जोग , बाबासाहेब सहस्त्रबुद्धे , माधव राव देशपांडे , बालासाहेब भाटे , वासुदेव राव और अन्य को विदा करने के बाद हम पटवर्धन , प्रधान , काका महाजनी , श्री तर्खड और श्री भिंडे , जो आज ही आए थे , के साथ रवाना हुए
हमने लगभग ६.३० बजे कोपरगाँव में ट्रेन पकड़ी और मनमाड तक का सफर किया , श्री भिंडे येवला में उतर गए
में और मेरा पुत्र जल्दी ही मनमाड से पंजाब मेल से निकलेगे





जय साईं राम!!!
ॐ साईं राम!!!

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