1. जिस तरह कीड़ा कपड़े को कुतरता है, उसी तरह इर्ष्या मनुष्य को
2. क्रोध मुर्खता से शुरू होता है और पश्च्याताप पर ख़त्म होता है
3. नम्रता से देवता भी मनुष्य के वश में आ जाते है
4. सम्पन्नता मित्रता बढ़ाती है और विपदा उनकी परख करती है
5. एक बार निकले बोल वापस नहीं आते, अतः सोच समझ के बोलें
6. तलवार की चोट इतनी तेज नहीं होती है जितनी की जिव्हा की
7. धीरज के सामने भयंकर संकट भी धूएं के बादल की तरह उड़ जाते है
8. तीन सच्चे मित्र हैं - बूढ़ी पत्नी, पुराना कुत्ता और पास का धन
9. मनुष्य के तीन सद्गुण -आशा, विश्वास और दान
10. घर में मेल होना पृथ्वी पर स्वर्ग होने के समान है
11. मनुष्य की महत्ता उसके कपड़ो से नही वरन उसके आचरण से होती है
12. दूसरों के हित के लिए अपना सुख त्याग करना ही सच्ची सेवा है
13. भूत से प्रेरणा ले कर वर्त्तमान में भविष्य का चिंतन करना चाहिए
14. जब तुम किसी की सेवा करो तो उसकी त्रुटियों को देख कर उससे घृणा नहीं करनी चाहिए
15. मनुष्य के रूप में परमात्मा सदा हमारे सामने होते हैं, उनकी सेवा करो
16. अँधा वो नहीं जिसकी आँखे नहीं है, अँधा वह है जो अपने दोषों को ढकता है
17. चिंता से रूप, बल और ज्ञान का नाश होता है
18. दूसरों को गिराने की कोशिश में तुम स्वयं गिर जाओगे
19. प्रेम मनुष्य को अपनी ओर खींचने वाला चुम्बक है
2. क्रोध मुर्खता से शुरू होता है और पश्च्याताप पर ख़त्म होता है
3. नम्रता से देवता भी मनुष्य के वश में आ जाते है
4. सम्पन्नता मित्रता बढ़ाती है और विपदा उनकी परख करती है
5. एक बार निकले बोल वापस नहीं आते, अतः सोच समझ के बोलें
6. तलवार की चोट इतनी तेज नहीं होती है जितनी की जिव्हा की
7. धीरज के सामने भयंकर संकट भी धूएं के बादल की तरह उड़ जाते है
8. तीन सच्चे मित्र हैं - बूढ़ी पत्नी, पुराना कुत्ता और पास का धन
9. मनुष्य के तीन सद्गुण -आशा, विश्वास और दान
10. घर में मेल होना पृथ्वी पर स्वर्ग होने के समान है
11. मनुष्य की महत्ता उसके कपड़ो से नही वरन उसके आचरण से होती है
12. दूसरों के हित के लिए अपना सुख त्याग करना ही सच्ची सेवा है
13. भूत से प्रेरणा ले कर वर्त्तमान में भविष्य का चिंतन करना चाहिए
14. जब तुम किसी की सेवा करो तो उसकी त्रुटियों को देख कर उससे घृणा नहीं करनी चाहिए
15. मनुष्य के रूप में परमात्मा सदा हमारे सामने होते हैं, उनकी सेवा करो
16. अँधा वो नहीं जिसकी आँखे नहीं है, अँधा वह है जो अपने दोषों को ढकता है
17. चिंता से रूप, बल और ज्ञान का नाश होता है
18. दूसरों को गिराने की कोशिश में तुम स्वयं गिर जाओगे
19. प्रेम मनुष्य को अपनी ओर खींचने वाला चुम्बक है
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