यदि तुम श्रध्दापूर्वक मेरे सामने हाथ फैलाओगे तो मैं सदैव तुम्हारे साथ रहुँगा। यद्यपि मैं शरीर से यहाँ (शिरङी) हूँ, परन्तु मुझे सात समुद्रों के पार भी घटित होने वाली घटनाओं का ज्ञान है। मैं तुम्हारे हृदय मे विराजित, तुम्हारे अन्तरस्थ ही हूँ। जिसका तुम्हारे तथा समस्त प्राणियों के हृदय में वास है, उसकी ही पूजा करो। धन्य और सौभाग्यशाली वही हैं, जो मेरे सर्वव्यापी स्वरूप से परिचित हैं।
ॐ साई राम
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