मेरी लाख चोरासी काट के,
मेरा जन्म दिया है संवार
तू छोड़ के शिरडी आ गया, मैंने जब भी करी पुकार।।
तेरी महिमा कैसे गऊ साई, तू है सच्चा सिरजनहार।
श्री चरणों में अंकित रख मुझे, आकांक्षा को मेरी कर साई स्वीकार ।।
लाखों रंगों के इस जग में, कहीं देखा न सच्चा दरबार।
तुने रूप फकीरी का धरा
साई पूरी कर दी मेरे हृदय की आकांक्षा बरम बार।।
तू ही मेरा सद्गुरु तू ही मेरा प्यार, तेरे श्री चरणों में अंकित होने की आकांक्ष मेरी बाबा साई तू कर स्वीकार।।
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