मुझ को कहाँ ढुडे रे बन्दे में तो तेरे पास में,
न तिरत में न मूरत में न एकांत निवास में,
न मंदिर में न मश्जिद में न काबे कैलाश में,
में तो तेरे पास में बन्दे में तो तेरे पास में,
खोजो तो तुरन्त मिल जाऊ एक पल की तलाश में,
कहत कबीर सुनो भाई साधो में तो हूँ विशवास में,
ओ बन्दे रे में तो तेरे पास में..
ॐ साँईं राम..
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