शिरडी
यात्रा की एक विशेषता यह थी कि बाबा की आज्ञा के बिना कोई भी शिरडी से
प्रस्थान नहीं कर सकता था और यदि किसी ने किया भी, तो मानो उसने अनेक
कष्टों को निमन्त्रण दे दिया । परन्तु यदि किसी को शिरडी छोड़ने की आज्ञा
हुई तो फिर वहाँ उसका ठहरना नहीं हो सकता था । जब भक्तगण लौटने के समय बाबा
को प्रणाम करने जाते तो बाबा उन्हें कुछ आदेश दिया करते थे, जिनका पालन
अति आवश्यक था । यदि इन आदेशों की अवज्ञा कर कोई लौट गया तो निश्चय ही उसे
किसी न किसी दुर्घटना का सामना करना पड़ता था । ऐसे कुछ उदाहरण यहाँ दिये
जाते हैं ।
तात्या कोते पाटील
एक
समय तात्या कोते पाटील गाँगे में बैठकर कोपरगाँव के बाजार को जा रहे थे ।
वे शीघ्रता से मसजिद में आये । बाबा को नमन किया और कहा कि मैं कोपरगाँव के
बाजार को जा रहा हूँ । बाबा ने कहा, शीघ्रता न करो, थोड़ा ठहरो । बाजार
जाने का विचार छोड़ दो और गाँव के बाहर न जाओ । उनकी उतावली को देखकर बाबा
ने कहा अच्छा, कम से कम शामा को साथ लेते जाओ । बाबा की आज्ञा की अवहेलना
करके उन्होंने तुरन्त ताँगा आगे बढ़ाया । ताँगे के दो घोड़ो में से एक
घोड़ा, जिसका मूल्य लगभग तीन सौ रुपया था, अति चंचल और द्रुतगामी था ।
रास्ते में सावली विहीर ग्राम पार करने के पश्चात ही वह अधिक वेग से दौड़ने
लगा । अकस्मात ही उसकी कमी में मोच आ गई । वह वहीं गिर पड़ा । यघरि तात्या
को अधिक चोट तो न आई, परन्तु उन्हें अपनी साई माँ के आदेशों की स्मृति
अवश्य हो आई । एक अन्य अवसर पर कोल्हार ग्राम को जाते हुए भी उन्होंने बाबा
के आदेशों की अवज्ञा की थी और ऊपर वर्णित घटना के समान ही दुर्घटना का
उन्हें सामना करना पड़ता था ।
श्री साईं सच्चरित्र अध्याय 9
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