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Thursday, 10 July 2014

आप सभी को गुरु पूर्णिमा  की हार्दिक शुभकामनाएँ

     "बाबा साईं की लीला सुने,
     करे बाबा साईं का ध्यान,
     भगति सद्गुरु साईं की,
      त्याग सकल अभिमान"
  
     साईं नाथ मेरा सत्य गुरु



सब धरती कागद करूं, लेखनि सब बन राय।

सात समुद की मसि करूं गुरु गुन लिखा न जाए॥

गुरुतर महत्ता का प्रतीयमान 'गुरु' शब्द स्वयं में ही अलौकिक श्रद्धा से अंकित है । 

शिष्य परम्परा पर समय समय पर अप संस्कृति की धूल जमने का प्रयास करती रही है किंतु इसकी शाश्वत उज्ज्वलता आज भी विद्यमान है। अब तो गुरु-वंदना में अखिल विश्व भारत का अनुसरण कर रहा है। जो अखंड ब्रह्माण्ड रूप में चर और अचर सब में व्याप्त है, जो ब्रह्मा, विष्णु और देवाधि देव महेश हैं, उन्हें हमरा सत सत नमन। "


बाबा साईं के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा हम सब पर बरसाते रहें ।

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपकी गोविन्द दियो मिलाय।।

संत कबीर दास की ये पंक्तियां हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति में गुरु के महत्व को अभिव्यक्त करती हैं।



गुरु की प्राप्ति सबसे बड़ी उपलब्धि है और गुरु के लिए कुछ भी अदेय नहीं है।


यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।

शीश दिये जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान॥


इस संसार के विष से भरे जीवन को अपनी सिद्धि और करुणा के सहारे गुरु अमृतमय बनाकर हमें हमारे लक्ष्य तक पहुंचा देता है। इसीलिए हर साधक गुरु को ब्रह्मा, गुरु को ही विष्णु और गुरु को ही सदा शिव, बल्कि यहां तक कि गुरु को ही परब्रह्म के रूप में नमन करते है।

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